-संजय कुमार /
"आहे न भरो इंटरनेट पर फोटो देख मेरी, हूँ अभी मैं जिन्दा, लेकिन हैं अस्तित्व खतरे में, करो पहल मुझे बचाने की, है वायदा घर-आँगन में चहचाहट से भर दूंगी खुशियाँ.
जी हाँ ...आइये नन्हीं सी चिड़िया ‘गौरैया’ को बचाने की करें पहल....गरमी बढ़ रही है. घर-आँगन, छत, बालकोनी या खुले में रखिये पानी हमेशा...साथ ही दाना भी. आवास के लिए झुरमुठ वाला पेड़ या फिर बॉक्स लगाये....आभारी रहूंगी --आपकी गौरैया.
गौरैया की संख्या लगातार घट रही है.. घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है, शहर ही नहीं गाँव से भी यह गुम हो गयी है । कहीं यह दिखती है तो कहीं दिखती ही नहीं। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है।
गौरैया की घटती संख्या के कई कारण हैं-मसलन,
* भोजन और जल की कमी बड़ी कमी
* खेता में कीटनाशक के प्रयोग ने और कहर ढाहा है। गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, जो प्रोटीन युक्त होता है। लेकिन आजकल लोग फसलों –फूलों यों कहे कि हर जगह इसका प्रयोग करते हैं, जिससे फसलों और पौधों को कीड़े लगते ही नहीं हैं इससे चिड़ियों को समुचित आहार नहीं मिल पाता । इस वजह से गौरैया आज विलुप्त की ओर अग्रसर है।
* पानी की भारी कमी भी है. गाँव या शहर के गली मोहल्लो में नल, कुएं, तालाब सुख गये हैं। ख़ास कर गरमी के दिनों में हालात और ख़राब हो जाते हैं।
* कंक्रीट के जंगलों ने इसका घोसलों उजाड़ दिया है । साथ ही तेजी से पेड़ और झुरमुठ पौधे काटे जा रहे हैं। पहले अमूमन हर घर के पीछे बाड़ी/बागीचा हुआ करता था लेकिन अब यह बहुत काम हो गया है ।
* मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंग को भी गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बताया जाता है। हालाँकि इस पर अंतिम रिपोर्ट नहीं आई है। सरकार ने इसे ख़ारिज भी किया है वहीँ कुछ संस्था अभी इसे दोषी मानती है। टाइम्स न्यूज नेटवर्क ने इस पर एक खबर 12अप्रैल 12, 2017 को छापी है।
ऐतिहासिक: कैंसर पेशंट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल टावर बंद कराया
टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: Apr 12, 2017, 11:48AM IST
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मोबाइल टावर रेडिएशन के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप रहा है कि इनसे गौरैया, कौवे और मधुमक्खियां खत्म हो रही हैं। हालांकि सेल्युलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इन आरोपों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि ऐसे भय निराधार हैं क्योंकि किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे में बताया गया है कि देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं। विभाग ने 3.30 लाख मोबाइल टावरों का परीक्षण किया है। ऐफ़िडेविट के मुताबिक केवल 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया। इनपर 10 लाख रुपये का फाइन लगाया गया। डिपार्टमेंट के मुताबिक अबतक सेल्युलर ऑपरेटर्स से पेनल्टी के तौर पर 10 करोड़ रुपये इकट्ठे किए जा चुके हैं।
दूरसंचार विभाग ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट और पिछले 30 सालों में प्रकाशित 25 हजार लेखों का भी जिक्र किया। इनके मुताबिक निम्न स्तरीय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र में रहने के किसी भी दुष्परिणाम की पुष्टि नहीं हुई। 2014 में एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को मोबाइल फोन टावर और हैंडसेट के विकिरण का इंसानों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच कराने की अनुशंसा की थी।
निजी याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने ऐसी कोई स्टडी नहीं कराई। हालांकि दूरसंचार विभाग ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने इसके लिए एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी। इस कमिटी को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड रेडिएशन के असर के स्टडी की जिम्मेदारी दी गई थी।(साभार)
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