हर वर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है “विश्व गौरैया दिवस”
(इंसानों के घरों में कभी अपना बसेरा बनाने वाली “गौरैया” आज विलुप्ती के कगार पर है। कहीं यह दिखती हैं तो कहीं विलुप्त हो गयी है। आंकडे बताते हैं कि विश्व में घर-आंगन में चहकने-फूदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। इसके संरक्षण को लेकर बिहार सरकार ने राजकीय पक्षी घोषित कर रखा है। गौरैया के संरक्षण की दिशा में कई साल से मैं सक्रिय हूं। मेरे कंकड़बाग, पटना आवास पर सुबह से शाम तक गौरैया की चहचाहट सुनाई पड़ती है। घर की बालकोनी में कई बॉक्स लगाये हैं तो वहीं 24 घण्टे दाना-पानी की व्यवस्था रहती है। साथ ही सोशल मीडिया और फोटो प्रदर्शनी के जरिये गौरैया के संरक्षण की अपील से कई मेरे मुहिम से जुड़ें।)
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संजय कुमार /
छोटे आकार वाली खूबसूरत गौरैया पक्षी का जिक्र आते ही को बचपन की याद आ जाती है। कभी इसका बसेरा इंसानों के घर-आंगन में हुआ करता था। लेकिन पर्यावरण को ठेंगा दिखाते हुए कंक्रीट के जगंल में तब्दील होते शहर और फिर गांव ने इन्हें हमसे दूर कर दिया है। एक वक्त हुआ करता था जब हर घर-आँगन में सूप से अनाज फटका जाता था तो फटकने के बाद गिरे अनाज को खाने ,गौरैया फुररर से आती थी और दाना खा कर फुररर से उड़ जाती थी। हम बचपन में इस पकड़ने की कोशिश करते हुए खेला करते थे। टोकरी के नीचे चावल रख इसे फंसाते और पकड़े के बाद गौरैया पर रंग डाल कर उड़ा देते। जब दूबारा वह आती थी, तो उसे पहचान कर मेरी गौरैया कह चहकते और खुश होकर ताली बचा कर उसका स्वागत करते थे। यह केवल मेरी कहानी नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति की है जिसके घर-आंगन में गौरैया की चीं...चीं की चहचाहट से नींद खुलती थी और आज भी गौरैया की चीं...चीं की चहचाहट से नींद खुलती है।
’गौरैया संरक्षण की शुरूआत’
यों तो देश भर में कई लोग और संस्थांए गौरैया संरक्षण पर काम कर रही है। लेकिन गौरैया संरक्षण की मेरी कहानी रोचक है। पिछले दस साल से संरक्षण देने के काम में लगा हूं। घटना जून 2007 की है जब तपती दोपहर में गौरैया को कीचेन में खाना खोजते देखा। साथ ही प्यास बुझाने के लिए नल में चोंच लगा कर पानी पीने की कोशिश देख दिल भर आया। तुरंत, घर में रखे आइस्क्रीम के डब्बे में पानी भरा और बालकोनी में रखे गमले में उसे रख दिया साथ ही रेलिंग पर चावल भी छिड़कर दिया, फिर क्या था गौरैया को दाना-पानी मिलने लगा। पहले दो-चार आयी। फिर उनकी संख्या बढ़ती ही गयी और आज मेरा बालकोनी उनका आसियाना बन चुका है। सुबह-सुबह झुंड में आती है। दाना-पानी नहीं रहने पर चीं चीं की शोर मचाती है। वैसे रात में ही दाना-पानी रख देते हैं। इस काम में मेरी पत्नी सहयोग करती हैं। ऑफिस जाने के बाद गौरैया पर नजर रखती है। इनके लिए दाना धर भी रखा हूं। इसमें हमेशा दाना रहता है। एक दाना घर सहयोग में मिला तो दूसरा खुद से बनाया। गौरैया का फेवरिट खाना धान है। धान की वाली गांव से मंगवा/खरीद कर रखवाता हूं। मेरे साथी पवन ने अपनी दादी जी से धान की बाली को बड़े ही रोचक अंदाज में गूथवा कर लाये। इसे लगाते ही इस पर लटकर कर खाती है। तो वहीं पत्र कालेज आफॅ कामर्स आर्ट एंड साइंस,पटना के पत्रकारिता विभाग के छात्र रजनीश रमण ने अपने गांव कजरा से धान की बाली लाकर दिया।
शुरू में आइस्क्रीम के डब्बे में पानी रखने से कौआ उसे लेकर भाग जाता था। बाद में मिट्टी के बर्तन में पानी रखने लगा। शुरूआत में कौआ ने बहुत परेशान किया गंदा लाकर पानी बर्तन में डाल देता था उसे खूब हडकाया/धमकाया। उसने मेरी बात मानी। अब वह आता है पानी पीता है लेकिन गंदा नहीं करता है। गौरैया के आने के साथ साथ दाना-पानी के लिए कबूतर, बुलबुल, इंडियन राबिन, पंडूक, कबूतर, तोता, मैना, कौआ के आने का जो सिलसिला चला आज तक जारी हैं। कौआ चोंच को झुका कर चावल खाता है तो वहीं गिलहरी भी धान-चावल कुट कुट कर खाती रहती है। तोता भी करतब करते हुए खाता है। इन सबके बीच गौरैया का आना-जाना लगा रहता है। इनके आने-जाने से मेरा बालकोनी कई चिड़ियों का बसेरा बन गया है। हां, गिलहरी जरूर परेशान करती है। गौरैया के लिए बालकोनी में कई बाक्स लगाये है। गौरैया के साथ इंडियन राॅबिन, मैना और गिलहरी भी रहती है। सबने बच्चे भी दिये। शांत गौरैया किसी से नहीं लड़ती, चुपचाप सब देखती रहती है, उस पर हमला बड़े पक्षी नहीं करें, इसके लिए सचेत रहना पड़ता है। गौरैया कभी अकेले या दो या फिर झुंड़ में आती है और बालकोनी की रेलिंग पर बैठती है। इनके बैठने के बालकोनी की रेलिंग किनारे बांस की बत्ती का झुला बनाया है, जिस पर गौरैया वहां बैठकर आनंद लेती है। हालांकि झुले पर सभी चिंड़िया बैठती है।
’गौरैया संरक्षण की जरूरत’
गौरैया संरक्षण की जरूरत को देखते हुए और अपने घर आंगन से रूठ चुकी गौरैया को बुलाने और संरक्षण का ख्याल मन में आया। इंसान तो दूसरे से खाना-पानी मांग सकता है लेकिन नन्हीं सी चिड़िया किससे मांगे। दाना पानी और बॉक्स बनाने से गौरैया के साथ-साथ दूसरी चिड़िया भी आने लगीं। एक धर में इंडियन राॅबिन के चार चार की संख्या में चार बार बच्चे हुए। तो वहीं मैना,गौरैया और गिलहरी के भी। गौरैया संरक्षण के लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। गौरैया की तस्वीर खींचने के लिए एक अच्छा कैमरा खरीदा। रोजाना फोटो खींच कर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हुए लोगों से अपने अपने घरों में दाना-पानी रखने की अपील करने लगा। फायदा भी हुआ। लगभग एक हजार से ज्यादा लोगों का फीडबैक मिला। सैकड़ों लोगों ने बताया कि उन्होंने पहल की और पहल से उनके यहां गौरैया के साथ साथ दूसरी चिड़िया भी दाना-पानी के चक्कर में आने लगी। मैंने फेसबुक पर हमारी गौरैया के नाम से पेज भी बना रखा हैं।
गौरैया संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी समझ अपनी खीची तस्वीरों की फोटो प्रदर्शनी भी लगायी है। पटना में आायेजित राष्ट्रीय पुलिस गेम, सोनपुर मेला, कालेज ऑफ कॉमर्स, आर्टस एंड सांइस पटना परिसर और इको पार्क के पास ‘‘ अभी मैं जिंदा हूं...गौरैया ’’ फोटो प्रदर्शनी आयोजित कर चुका हूं। फोटो प्रदर्शनी से लोगों उत्साह दिखा और कई ने संरक्षण की दिशा में आगे आने की बात कही।
’कम होती संख्या’
घर-आंगन में चहकने-फूदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। सच भी है अपनी चीं..चीं से प्रकृति को चहकाने वाली गौरैया मुशिकल से अब दिखाई देती है। स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है। और कहीं.....कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई ही नहीं देती। जहाँ दिखायी दे रही वहां उसे बचाने की पुरजोर कोशिश जारी है। गौरैया को बचाने को लेकर हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी मनाया जाता है।
बिहार सरकार ने तो गौरैया को संरक्षण देने को लेकर पहल शुरू करते हुए जनवरी 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी को घोषित कर रखा है। लोगों के घर-आंगन-बालकोनी में इसकी चहचहाट दोबारा गूंजने लगे इसे लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। सरकारी और गैरसरकारी संस्थान की ओर से लोगों को गौरैया बाक्स और कृत्रिम घोषला दिया जाता है। लोग भी जागरूक हुए है लोगों के घरों में गौरैया बाक्स और कृत्रिम घोषला नजर आने लगा है।
’विलुप्ती के कारण’
इसके संरक्षण के लिए काम की जरूरत को देखते हुए मैं इससे जुडा क्योंकि विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में गौरैया आ गई है। पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को दाना खिलाया करती थी तो घर-आंगन में मां अपने बच्चे को उसे दिखाते हुए खाना खिलाया करती थी। लेकिन अब लोग इंटरनेट पर इसकी खूबसूरत तस्वीरें देख आहे भरते हैं। आवासीय गिरावट, पेड़ों की कमी और सब्जी-फल-अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गौरैया अपने बच्चे को सब्जी-फलों में लगने वाले कीड़े को खिलाती है। इससे गौरैया के बच्चे को प्रोटीन मिलता है। बच्चा अनाज खा नहीं सकता है। लेकिन जिस तरह से सब्जी-फल-अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा है उससे उन्हें सही आहार नहीं मिल पाता है।
गौरैयों की कमी के पीछे मोबाइल टावरों को दोषी ठहराया जाता रहा है। गौरैयों के कम होने के पीछे मोबाइल टावरों का तर्क भारत सरकार की रिपोर्ट से खारिज हो चुका है। सरकारी सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है कि मोबाइल टावरों का कोई प्रभाव गौरैया के प्रजनन पर नहीं पड़ता है। हालांकि इसके विलुप्ती के कारणांे को ढूंढ़ने की जरूत है। यह अपना आवास इंसानों के घरों में बनाती है। पहले खुल्ले-खुल्ले आवास होते थे। अब मकानों में वेंटीलेटर तक नहीं होता। उपर से घर आपस में सटे होते हैं। ऐसे में घोषला बनाने के लिए जगह नहीं मिलना भी बड़ा कारण है। वैसे आज भी इसे जिस घर में छेद-खोह दिख जाता है वहां घोषला बना लेती है। शहरों और गांवों में मकानों का पक्काकरण होने से गौरैया को घर बनाने में परेशानी होती है। खपरैल या फूस के घरों में यह आसानी से घर बना लेती है। गौरैया की खासियत यह है कि इसे जहाँ आहार-पानी-पेड़ और सुरक्षा दिखता है वहां प्रवास करती है। यही वजह है कि रेलवे स्टेशनों पर गौरैया दिख जाती है। वहां आसानी से उसे आहार मिल जाता है। पटना शहर में हर क्षेत्र में यह नहीं दिखती, लेकिन पुराने इलाकों और पटना रेलवे प्लेटफॉर्म पर दिख जाती है।
’गौरैया-घरेलू पक्षी’
गौरैया एक छोटी सी घरेलू पक्षी है। यह यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से पायी जाती है। इसकी छह प्रजातियां हैं, हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। हाउस स्पैरो को ही “गौरैया” कहा जाता है। यह हल्की भूरे रंग की होती है। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से किया जाता है। जबकि, मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। (लेखक- प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो में सहायक निदेशक हैं और अब तक नौ पुस्तकें लिख चुके हैं।)
संजय कुमार,
303, दिगम्बर प्लेस,
लोहियानगर, कंकडबाग, पटना-800020, बिहार।
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*परिचय
संजय कुमार
*बिहार, भोजपुर के आरा में जन्म, वैसे भागलपुर का मूलनिवासी। पत्रकारिता में डिप्लोमा व स्नातकोत्तर।
*2007 से गौरैया संरक्षण में सक्रिय। सोशल मीडिया पर पेज बनाकर इसके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना।
* बिहार सरकार के वन एवं पर्यवरण विभाग से वर्ष 2016 में गौरैया संरक्षण में कार्य हेतु द्वितीय पुरस्कार।
* फोटोग्राफी का बचपन से शौक। पत्रकारिता के दौरान ज्यादा प्रयोग। कई वर्षों से चिड़ियों की फोटोग्राफी। खास कर गौरैया की फोटोग्राफी करना(लोकेशन-घर दिगंबर प्लेस, लोहियानगर, कंकड़बाग पटना)।
* प्रोफेशन-पत्रकारिता-शुरूआत वर्ष 1989 में भागलपुर शहर से। राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर ढेरों आलेख, रिर्पोट-समाचार, फीचर आदि प्रकाशित। आकाशवाणी से वार्ता प्रसारित और रेडियो नाटकों में भागीदारी, साथ ही नुक्कड़ नाट्य आंदोलन के शुरूआती दौर से ही जुड़ाव एवं सक्रिय भूमिका। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रों के लिए लेखन जारी, खासकर मीडिया, वंचित वर्ग और सामाजिक सरोकर के मुद्दे को लेकर। वर्ष 2002 से अक्टूबर 2014 तक इलेक्ट्रानिक मीडिया-आकाशवाणी के समाचार प्रभाग और वर्ष दिसंबर 2014से दूरदर्शन के समाचार सेवा प्रभाग से जुड़ कर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, विकासात्मक और जनहित से जुड़ी खबरों को जनता के बीच पहुँचाने की कोशिश।
*अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित। 1. तालों में ताले अलीगढ़ के ताले, 2.नागालैंड के रंग बिरंगे उत्सव, 3.पूरब का स्वीट्जरलैंड नागालैंड, 4. 1857 जनक्रांति के बिहारी नायक, 5. बिहार की पत्रकारिता तब और अब, 6. आकाशवाणी समाचार की दुनिया, 7.रेडियो पत्रकारिता और 8. मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे और 9. मीडिया: महिला, जाति और जुगाड़ 10. मीडिया में जाति का खेल (पे्रस में) ।
*बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा ‘नवोदित साहित्य सम्मान’, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अलावे विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा कई सम्मानों से सम्मानित।
* सम्प्रतिः वर्ष 1993 से भारतीय सूचना सेवा में।
*फिलहाल प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,पटना में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत।
*सम्पर्क संजय कुमार, 303, दिगम्बर प्लेस, लोहियानगर, कंकडबाग, पटना-800020, बिहार।
*मो-09934293148, 7004298794 मेल-sanju3feb@gmail.com
आभार सर, बेहद उपयोगी जानकारी है. मैं भी सार्थक प्रयास शुरू करता हूँ..
ReplyDeleteआभार
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