Saturday, March 31, 2018

प्रकृति सृजन और अपनी विलुप्ती को कम करने की प्रक्रिया में....गौरैया


संजय कुमार / गौरैया ...प्रकृति को तोहफा और अपनी विलुप्ती को कम करने की प्रक्रिया में । 31 मार्च 2018 सुबह सुबह गौरैया जोड़ा प्रजनन कीड़ा में दिखा...... अभी इनका सीजन चल रहा है। एक राउंड गौरेया का बच्चा निकल चुका है।
ये प्रजजन कीड़ा बड़े ही खास अंदाज में करते हैं। पहले ये जोड़ा बनाते हैं। प्रजजन के समय आते ही कई दिनों तक नर गौरैया मादा के इर्द गिर्द घूमता है। अजीब सी आवाज निकाल कर बुलाता है।
मादा के आने पर यह खुशी से नाचता है। इस दौरान सुरीली आवाज निकालता है। फिर ये प्रेम में डूब जाते हैं। दोनों उड़ते हुए एक दूसरे के पीछे भागते हैं। भागते भागते मादा एक जगह देख बैठ जाती है। नर गौरैया उड़ते हुए ही आता है और प्रेम में डूब जाता है। इस दौरान नर की आंखों में अजीब चमक आती है।
10 से 20 सेकेंड के कई समय चक्र में नर प्रेम करता है। इस दौरान मादा नहीं उड़ती है केवल नर उड़ता है और उस पर बैठता है। इस दौरान वह पंख खुले रहते हैं।

Wednesday, March 28, 2018

मैं हूँ छुटकी 'बच्चा गौरैया'....प्लीज संरक्षण कीजिये


संजय कुमार / जी, नमस्ते...... मैं हूँ छुटकी आपकी 'बच्चा गौरैया' ....
आप मेरा और मेर भाई-बहन का ख्याल रखिये. घोषले से अब हम बाहर आ रहे हैं .यह सिलसिला अगले कई माह तक चलेगा ..कौआ हम पर नजर गड़ाए हुए है.हम जब घोषाला से नीचे गिर जाते है तो कौआ. झपटा मार हमें ले उडता है और अपना आहार बना लेता है. मेरे छोटे छोटे ममी पापा देखते रह जाते हैं... अपील तो नहीं आग्रह करती हूँ कृपया जहाँ-जहाँ मेरे भाई -बंधु घोषले में हैं आप नजर बनाये रखिये ताकि घोषले से गिर जाये तो आप हमें उठा कर घोषले में रख दें...
कल भाई नरेश जी ने बताया कि एक गौरैया का बच्चा उनके घर के पास मरा हुआ मिला. उनके घर के आस पास बहुत गौरैया रहती है . शायद किसी का बच्चा घोषले से गिर गया और दाना -पानी के अभाव में या गर्मी से दम तोड़ दिया .
जहाँ जहाँ हमारे भाई-बंधु है प्लीज दाना पानी रखिये साथ ही हमारा संरक्षण भी कीजिये. तभी हम विलुप्ती के दायरे से बाहर आप पाएंगे ...नन्ही सी जान हूँ न .और हाँ #सरकार दादा से भी आग्रह है. जहाँ हम है उस इलाके को चिन्हित कर हमारे लिए थोडी व्यवस्था कीजिये ...तभी आपका *विश्व गौरैया दिवस ...कार्यक्रम में हमें संरक्षित करने का आह्वान सफल होगा. .....................आपकी प्यारी छोटी चींची.

Tuesday, March 27, 2018

प्रेम में गौरैया ........


संजय कुमार/ गौरैया जोड़ा आज(28-3-18) पूरे मुड में दिखें ...नर गौरैया पंख फौला कर सुरीली आवाज निकालते हुए मादा गौरैया के समझ प्यार का इजहार करता रहा ...एक दूसरे के आगे -पीछे भागते रहे ....मनी प्लांट में गये ...एक से दो मिनट प्यार में डूबे रहे ..फिर दाना खाया पानी पी ...फ़ुर हो गये....
इनदिनों गौरैया का प्रजनन का दौर चल रहा है .....सबसे मजेदार उनके बीच का प्यारा सा रिश्ता दिखता है ..ये तोता की तरह प्यार नहीं करते ...नृत्य और गीत का जिम्मा नर के ऊपर होता है ....मादा गौरैया नृत्य नहीं करती .
जब नर गौरैया का नृत्य और गीत चरम पर होता है तो वह नर को चोंच से मरती है ....कुछ ही देर में ये प्यार में डूब जाते हैं ..कभी कभी ये उड़ते हुए भी प्यार में डूबता हैं तो कभी कभी जमीन पर नृत्य और गीत के साथ ....
बड़ा ही मन मोहक दौर रहता है ....गौरैया की सुरीली आवाज ....आकर्षित करता है ....नर हो या मादा एक दूसरे को बुलाने के लिए भी ...अलग आवाज देते हैं जैसे एक दूसरे को नाम से आवाज दे रहे हों ...कुछ समय में एक दूसरे के पास आ जाते है .

Sunday, March 25, 2018

तीन साल ही जी पाती है *घरेलू गौरैया*


-संजय कुमार /घरेलू गौरैया का जीवनकाल तीन साल हैं लेकिन कई कारणों से यह विलुप्त होती जा रही है हालाँकि गौरैया को संरक्षित करने की मुहिम शुरू हो चुकी है। 24मार्च 2018 को एक ऐसा गौरैया आया जिसे देखने से साफ़ प्रतीत होता है कि वह बुढा हो चला है.शरीर, आखें, पैर यही बयां कर रहें। इसकी वैज्ञानिक जांच नहीं बस मेरा आकलन है। कई गौरैया को देखा है कुछ कई एक दो साल दिखती है । हालाँकि हर साल नये गौरैया भी दिखती है। इस साल बच्चे दिखने लगे हैं।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया की माने तो घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। गौरैया छोटे पास्ता पक्षी के एक परिवार हैं। वे सच्चे स्कीमारों के रूप में भी जाना जाता है, या पुरानी दुनिया की चिंवीमो, नाम भी परिवार के एक विशेष जीनस के लिए इस्तेमाल करते हैं। डालते हैं इस पर एक नजर । इसका वैज्ञानिक नाम Passeridae है। घरेलू गौरैया 46 कि॰/घं॰की गति से उड़ सकती है। इसके पंखों का फैलाव: यूरेशियाई वृक्ष गौरैया: 21 सें.मी. है। गौरैया का जीवनकाल, घरेलू गौरैया और यूरेशियाई वृक्ष गौरैया 3 वर्ष है। घरेलू गौरैया का द्रव्यमान 24 – 40 ग्रा. होता है।(साभार - मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया)

Saturday, March 24, 2018

गौरैया जोड़ा, घोषला ...बच्चा


-संजय कुमार /........यों तो गौरैया झुण्ड में रहती है ..लेकिन जोड़ा में भी... खासकर प्रजनन के लिए यह जोड़ा बनाती हैं.... मादा गौरैया को पटाने के लिए यह ..बहत ही सुरीली आवाज निकालता है. बदले में मादा गौरैया धीरे से आवाज निकालती है ..नर गौरैया आकर्षित करने के लिए पंख फैला कर सुरीली आवाज के साथ नृत्य भी करता हैं.
यह सिलसिला कई दिनों तक चलता है . मैंने देखा है जब मादा गौरैया नहीं आती है तो बेचैन होकर नर गौरैया तेज और अलग सी आवाज में मादा को बुलाता है. जब मादा आ जाती तो...ख़ुशी से नाचने लगता है..इसी बीच अगर दूसरा नर गौरैया आ जाये तो फिर आपस में भीड़ जाते है ...हवा में लड़ाई होती है.
*मादा गौरैया के साथ जोड़ी बनाने के बाद . नर गौरैया घोषला बनाता है ...मेरे बालकोनी में लगे बॉक्स में यह सब हो चूका है. फिर ये प्रकृति को नायाब तोहफा देने में सक्रिय हो जाते हैं ...आज 24 मर्च 2018 को अपने बच्चे के साथ यह जोड़ा आया ..थोड़ी देर खाने -पीने के बाद नर गौरैया ने तिनका भी तोडा.
आज 24 मर्च 2018 को गौरैया का बच्चा इस साल का दिखा ...माँ -बाप के साथ दाना-पानी के लिए आया. जब यह दाना खा रहा था तब इसके परिजन आसपास में थे. नजर इस पर उनकी रहती है. ताकि कौआ हमला न कर दे.
संभवतः पिछले रविवार 18 मार्च की शाम 5 बजे के आसपास कौआ ने एक गौरैया के बच्चे को लगभग पकड़ लिया था लेकिन जब मैंने पत्थर मारा और अपार्टमेन्ट के गार्ड ने भी पत्थर मारा तो उसे छोड़ दिया..गौरैया का बच्चा पेड़ पर बैठ छुप गया ..तब तक दस से ज्यादा कौआ आ गये थे .. फिर मैंने नीचे गया और कौआ को भागने की कोशिश किया . घर के आस पास गौरैया और कौआ बहुत हैं .कौआ हमेशा छोटी चिड़िया के बच्चे को अपना आहार बनता है ...जरूरत है गौरैया गौरैया और उसके बच्चा को संरक्षण देने का.
चिड़िया जिस घोषाला में अंडे देती है और जब बच्चे बड़े होकर निकल जाते हैं तो ...फिर से अंडे देने के लिए घोषाला में तिनका रखती है ...आज एक नर गौरैया घोषला के लिए तिनका तोड़ ले गया ....गौरैया का बच्चा शायद बाहर आ चुका है ...गौरैया का बच्चा अब दिखने लगा है ...यानि अगले राउंड की तैयारी में गौरैया जोड़ा लग गया है ....विलुप्त गौरैया की संख्या बढ़े ....आप भी गौरैया संरक्षण में भागीदार बने .

Friday, March 23, 2018

रूठी गौरैया को मानाने के लिए रखें दाना पानी बनाये बॉक्स


-संजय कुमार / "आहे न भरो इंटरनेट पर फोटो देख मेरी, हूँ अभी मैं जिन्दा, लेकिन हैं अस्तित्व खतरे में, करो पहल मुझे बचाने की, है वायदा घर-आँगन में चहचाहट से भर दूंगी खुशियाँ.
जी हाँ ...आइये नन्हीं सी चिड़िया ‘गौरैया’ को बचाने की करें पहल....गरमी बढ़ रही है. घर-आँगन, छत, बालकोनी या खुले में रखिये पानी हमेशा...साथ ही दाना भी. आवास के लिए झुरमुठ वाला पेड़ या फिर बॉक्स लगाये....आभारी रहूंगी --आपकी गौरैया. गौरैया की संख्या लगातार घट रही है.. घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है, शहर ही नहीं गाँव से भी यह गुम हो गयी है । कहीं यह दिखती है तो कहीं दिखती ही नहीं। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया की घटती संख्या के कई कारण हैं-मसलन, * भोजन और जल की कमी बड़ी कमी
* खेता में कीटनाशक के प्रयोग ने और कहर ढाहा है। गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, जो प्रोटीन युक्त होता है। लेकिन आजकल लोग फसलों –फूलों यों कहे कि हर जगह इसका प्रयोग करते हैं, जिससे फसलों और पौधों को कीड़े लगते ही नहीं हैं इससे चिड़ियों को समुचित आहार नहीं मिल पाता । इस वजह से गौरैया आज विलुप्त की ओर अग्रसर है।
* पानी की भारी कमी भी है. गाँव या शहर के गली मोहल्लो में नल, कुएं, तालाब सुख गये हैं। ख़ास कर गरमी के दिनों में हालात और ख़राब हो जाते हैं।
* कंक्रीट के जंगलों ने इसका घोसलों उजाड़ दिया है । साथ ही तेजी से पेड़ और झुरमुठ पौधे काटे जा रहे हैं। पहले अमूमन हर घर के पीछे बाड़ी/बागीचा हुआ करता था लेकिन अब यह बहुत काम हो गया है ।
* मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंग को भी गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बताया जाता है। हालाँकि इस पर अंतिम रिपोर्ट नहीं आई है। सरकार ने इसे ख़ारिज भी किया है वहीँ कुछ संस्था अभी इसे दोषी मानती है। टाइम्स न्यूज नेटवर्क ने इस पर एक खबर 12अप्रैल 12, 2017 को छापी है। ऐतिहासिक: कैंसर पेशंट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल टावर बंद कराया टाइम्स न्यूज नेटवर्क | Updated: Apr 12, 2017, 11:48AM IST 12 मोबाइल टावर रेडिएशन के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप रहा है कि इनसे गौरैया, कौवे और मधुमक्खियां खत्म हो रही हैं। हालांकि सेल्युलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इन आरोपों का जोरदार खंडन किया है। उन्होंने यह तर्क दिया है कि ऐसे भय निराधार हैं क्योंकि किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी पुष्टि नहीं की है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे में बताया गया है कि देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं। विभाग ने 3.30 लाख मोबाइल टावरों का परीक्षण किया है। ऐफ़िडेविट के मुताबिक केवल 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया। इनपर 10 लाख रुपये का फाइन लगाया गया। डिपार्टमेंट के मुताबिक अबतक सेल्युलर ऑपरेटर्स से पेनल्टी के तौर पर 10 करोड़ रुपये इकट्ठे किए जा चुके हैं। दूरसंचार विभाग ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट और पिछले 30 सालों में प्रकाशित 25 हजार लेखों का भी जिक्र किया। इनके मुताबिक निम्न स्तरीय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र में रहने के किसी भी दुष्परिणाम की पुष्टि नहीं हुई। 2014 में एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को मोबाइल फोन टावर और हैंडसेट के विकिरण का इंसानों पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच कराने की अनुशंसा की थी। निजी याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने ऐसी कोई स्टडी नहीं कराई। हालांकि दूरसंचार विभाग ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने इसके लिए एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी। इस कमिटी को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड रेडिएशन के असर के स्टडी की जिम्मेदारी दी गई थी।(साभार)

पीआइबी के सहायक निदेशक संजय कुमार को उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गौरैया फोटोग्राफी एवं संरक्षण के लिए सम्मानित किया


पटना: विश्व गौरैया दिवस पर पटना जू की ओर से आयोजित फोटोग्राफी प्रतियोगिता में पीआइबी के सहायक निदेशक संजय कुमार को बिहार उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने द्वितीय पुरस्कार से नवाजा।
संजय गांधी जैविक उद्यान में 20 मार्च को आयोजित कार्यक्रम में गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने को लेकर पिछले 11 साल से काम कर रहे श्री कुमार को विशेष तौर पर इसके लिए सम्मानित भी किया।
उन्हें एक घोषला श्री मोदी ने भेंट किया और इस विषय पर दर्शकों के सामने अपनी बात रखने का भी अवसर प्रदान किया। इस खुली फोटोग्राफी प्रतियोगिता में पटना जू ने ‘गौरैयाः प्राकृतिक वास में’ विषय पर खीची तस्वीरें लोगों से मंगवाई थी।
मौके पर वन विभाग के कई अधिकारी मौजूद थे.

विश्व गौरेया दिवस(20 मार्च)पर जागरूकता अभियान; एकदिवसीय चित्र प्रदर्शनी का आयोजन


गौरेया संरक्षक संजय कुमार के गौरेया से संबंधित खीचीं गई तस्वीरों पर आधारित है चित्र प्रदर्शनी
पटना .पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पटना द्वारा विश्व गौरेया दिवस पर आज कर्पूरी ठाकुर सदन, आशियाना-दीघा रोड, पटना में गौरेया संरक्षण पर चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। पीआईबी, पटना के सहायक निदेशक (एम एंड सी) एवं गौरेया संरक्षक संजय कुमार द्वारा गौरेया से संबंधित खीचीं गई तस्वीरों पर आधारित इस एकदिवसीय चित्र प्रदर्शनी का मुख्य उद्येश्य लोगों को गौरेया संरक्षण के प्रति जागरूक करना था। इस अवसर पर पीआईबी एवं क्षेत्रीय आउटरिच ब्यूरो (आरओबी), पटना के अपर महानिदेशक मयंक कुमार अग्रवाल, निदेशक दिनेश कुमार, एवं क्षेत्रीय आउटरिच ब्यूरो (आरओबी), पटना के निदेशक विजय कुमार, पीआईबी, पटना के सूचना सहायक पवन कुमार सिन्हा एवं सूचना सहायक भुवन कुमार, आरओबी के प्रदर्शनी सहायक मनीष कुमार सहित सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न मीडिया ईकाइयों के अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद थे।
प्रदर्शनी के उद्घाटनकर्ता एवं मुख्य अतिथि पीआईबी एवं आरओबी, पटना के अपर महानिदेशक मयंक कुमार अग्रवाल ने कहा कि इस चित्र प्रदर्शनी का मुख्य लक्ष्य नई पीढ़ियों को गौरेया संरक्षण के प्रति जारूक करना है। श्री अग्रवाल ने कहा कि शहरीकरण की बढ़ती प्रवृति और कृषि कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले पेस्टिसाइड्स ने गौरेया पर बुरा प्रभाव डाला है जिसका नतीजा यह हुआ कि कभी हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली यह पक्षी आज हमसे दूर होते जा रही है। उन्होंने कहा कि गौरेया संरक्षण के साथ-साथ अन्य जीव-जंतुओं के प्रति भी हमारे मन में श्रद्धा हो। वहां मौजूद लोगों से अपील करते हुए श्री अग्रवाल ने कहा कि पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए बड़े प्रयास न भी कर सकें तो कम से कम दाना-पानी की ही व्यवस्था कर दें।
इस अवसर पर पत्र सूचना कार्यालय, पटना के सहायक निदेशक (एम एंड सी) एवं गौरेया संरक्षक श्री संजय कुमार ने कहा कि गौरेया अब मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है। उन्होंने कहा कि गौरेया संरक्षण के प्रयास के अलावा दूसरे अन्य पक्षियों को भी दाना-पानी देना दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। श्री कुमार ने कहा कि चित्र प्रदर्शनी का मुख्य उद्येश्य लोगों को गौरेया के प्रति जागरूक करना है।
गौरतलब है कि चित्र प्रदर्शनी में शामिल तस्वीरों को शब्द देने का काम पीआईबी, पटना के निदेशक दिनेश कुमार ने दिया है। दरअसल, प्रदर्शनी के सभी चित्रों के लिए काव्यात्मक कैप्शन भी इस एकदिवसीय चित्र प्रदर्शनी का आकर्षक पक्ष है। उन्होंने कहा कि घर आंगन से गुम गौरेया को वापस बुलाने का संदेश लोगों को यह प्रदर्शनी दे रही है। उम्मीद है कि लोग इस पहल से जुड़ेंगे।

अभी मैं जिंदा हूं....’गौरैया’


हर वर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है “विश्व गौरैया दिवस” (इंसानों के घरों में कभी अपना बसेरा बनाने वाली “गौरैया” आज विलुप्ती के कगार पर है। कहीं यह दिखती हैं तो कहीं विलुप्त हो गयी है। आंकडे बताते हैं कि विश्व में घर-आंगन में चहकने-फूदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। इसके संरक्षण को लेकर बिहार सरकार ने राजकीय पक्षी घोषित कर रखा है। गौरैया के संरक्षण की दिशा में कई साल से मैं सक्रिय हूं। मेरे कंकड़बाग, पटना आवास पर सुबह से शाम तक गौरैया की चहचाहट सुनाई पड़ती है। घर की बालकोनी में कई बॉक्स लगाये हैं तो वहीं 24 घण्टे दाना-पानी की व्यवस्था रहती है। साथ ही सोशल मीडिया और फोटो प्रदर्शनी के जरिये गौरैया के संरक्षण की अपील से कई मेरे मुहिम से जुड़ें।)
-संजय कुमार / छोटे आकार वाली खूबसूरत गौरैया पक्षी का जिक्र आते ही को बचपन की याद आ जाती है। कभी इसका बसेरा इंसानों के घर-आंगन में हुआ करता था। लेकिन पर्यावरण को ठेंगा दिखाते हुए कंक्रीट के जगंल में तब्दील होते शहर और फिर गांव ने इन्हें हमसे दूर कर दिया है। एक वक्त हुआ करता था जब हर घर-आँगन में सूप से अनाज फटका जाता था तो फटकने के बाद गिरे अनाज को खाने ,गौरैया फुररर से आती थी और दाना खा कर फुररर से उड़ जाती थी। हम बचपन में इस पकड़ने की कोशिश करते हुए खेला करते थे। टोकरी के नीचे चावल रख इसे फंसाते और पकड़े के बाद गौरैया पर रंग डाल कर उड़ा देते। जब दूबारा वह आती थी, तो उसे पहचान कर मेरी गौरैया कह चहकते और खुश होकर ताली बचा कर उसका स्वागत करते थे। यह केवल मेरी कहानी नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति की है जिसके घर-आंगन में गौरैया की चीं...चीं की चहचाहट से नींद खुलती थी और आज भी गौरैया की चीं...चीं की चहचाहट से नींद खुलती है। ’गौरैया संरक्षण की शुरूआत’ यों तो देश भर में कई लोग और संस्थांए गौरैया संरक्षण पर काम कर रही है। लेकिन गौरैया संरक्षण की मेरी कहानी रोचक है। पिछले दस साल से संरक्षण देने के काम में लगा हूं। घटना जून 2007 की है जब तपती दोपहर में गौरैया को कीचेन में खाना खोजते देखा। साथ ही प्यास बुझाने के लिए नल में चोंच लगा कर पानी पीने की कोशिश देख दिल भर आया। तुरंत, घर में रखे आइस्क्रीम के डब्बे में पानी भरा और बालकोनी में रखे गमले में उसे रख दिया साथ ही रेलिंग पर चावल भी छिड़कर दिया, फिर क्या था गौरैया को दाना-पानी मिलने लगा। पहले दो-चार आयी। फिर उनकी संख्या बढ़ती ही गयी और आज मेरा बालकोनी उनका आसियाना बन चुका है। सुबह-सुबह झुंड में आती है। दाना-पानी नहीं रहने पर चीं चीं की शोर मचाती है। वैसे रात में ही दाना-पानी रख देते हैं। इस काम में मेरी पत्नी सहयोग करती हैं। ऑफिस जाने के बाद गौरैया पर नजर रखती है। इनके लिए दाना धर भी रखा हूं। इसमें हमेशा दाना रहता है। एक दाना घर सहयोग में मिला तो दूसरा खुद से बनाया। गौरैया का फेवरिट खाना धान है। धान की वाली गांव से मंगवा/खरीद कर रखवाता हूं। मेरे साथी पवन ने अपनी दादी जी से धान की बाली को बड़े ही रोचक अंदाज में गूथवा कर लाये। इसे लगाते ही इस पर लटकर कर खाती है। तो वहीं पत्र कालेज आफॅ कामर्स आर्ट एंड साइंस,पटना के पत्रकारिता विभाग के छात्र रजनीश रमण ने अपने गांव कजरा से धान की बाली लाकर दिया। शुरू में आइस्क्रीम के डब्बे में पानी रखने से कौआ उसे लेकर भाग जाता था। बाद में मिट्टी के बर्तन में पानी रखने लगा। शुरूआत में कौआ ने बहुत परेशान किया गंदा लाकर पानी बर्तन में डाल देता था उसे खूब हडकाया/धमकाया। उसने मेरी बात मानी। अब वह आता है पानी पीता है लेकिन गंदा नहीं करता है। गौरैया के आने के साथ साथ दाना-पानी के लिए कबूतर, बुलबुल, इंडियन राबिन, पंडूक, कबूतर, तोता, मैना, कौआ के आने का जो सिलसिला चला आज तक जारी हैं। कौआ चोंच को झुका कर चावल खाता है तो वहीं गिलहरी भी धान-चावल कुट कुट कर खाती रहती है। तोता भी करतब करते हुए खाता है। इन सबके बीच गौरैया का आना-जाना लगा रहता है। इनके आने-जाने से मेरा बालकोनी कई चिड़ियों का बसेरा बन गया है। हां, गिलहरी जरूर परेशान करती है। गौरैया के लिए बालकोनी में कई बाक्स लगाये है। गौरैया के साथ इंडियन राॅबिन, मैना और गिलहरी भी रहती है। सबने बच्चे भी दिये। शांत गौरैया किसी से नहीं लड़ती, चुपचाप सब देखती रहती है, उस पर हमला बड़े पक्षी नहीं करें, इसके लिए सचेत रहना पड़ता है। गौरैया कभी अकेले या दो या फिर झुंड़ में आती है और बालकोनी की रेलिंग पर बैठती है। इनके बैठने के बालकोनी की रेलिंग किनारे बांस की बत्ती का झुला बनाया है, जिस पर गौरैया वहां बैठकर आनंद लेती है। हालांकि झुले पर सभी चिंड़िया बैठती है। ’गौरैया संरक्षण की जरूरत’ गौरैया संरक्षण की जरूरत को देखते हुए और अपने घर आंगन से रूठ चुकी गौरैया को बुलाने और संरक्षण का ख्याल मन में आया। इंसान तो दूसरे से खाना-पानी मांग सकता है लेकिन नन्हीं सी चिड़िया किससे मांगे। दाना पानी और बॉक्स बनाने से गौरैया के साथ-साथ दूसरी चिड़िया भी आने लगीं। एक धर में इंडियन राॅबिन के चार चार की संख्या में चार बार बच्चे हुए। तो वहीं मैना,गौरैया और गिलहरी के भी। गौरैया संरक्षण के लिए मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। गौरैया की तस्वीर खींचने के लिए एक अच्छा कैमरा खरीदा। रोजाना फोटो खींच कर फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हुए लोगों से अपने अपने घरों में दाना-पानी रखने की अपील करने लगा। फायदा भी हुआ। लगभग एक हजार से ज्यादा लोगों का फीडबैक मिला। सैकड़ों लोगों ने बताया कि उन्होंने पहल की और पहल से उनके यहां गौरैया के साथ साथ दूसरी चिड़िया भी दाना-पानी के चक्कर में आने लगी। मैंने फेसबुक पर हमारी गौरैया के नाम से पेज भी बना रखा हैं। गौरैया संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी समझ अपनी खीची तस्वीरों की फोटो प्रदर्शनी भी लगायी है। पटना में आायेजित राष्ट्रीय पुलिस गेम, सोनपुर मेला, कालेज ऑफ कॉमर्स, आर्टस एंड सांइस पटना परिसर और इको पार्क के पास ‘‘ अभी मैं जिंदा हूं...गौरैया ’’ फोटो प्रदर्शनी आयोजित कर चुका हूं। फोटो प्रदर्शनी से लोगों उत्साह दिखा और कई ने संरक्षण की दिशा में आगे आने की बात कही। ’कम होती संख्या’ घर-आंगन में चहकने-फूदकने वाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। सच भी है अपनी चीं..चीं से प्रकृति को चहकाने वाली गौरैया मुशिकल से अब दिखाई देती है। स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है। और कहीं.....कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई ही नहीं देती। जहाँ दिखायी दे रही वहां उसे बचाने की पुरजोर कोशिश जारी है। गौरैया को बचाने को लेकर हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी मनाया जाता है। बिहार सरकार ने तो गौरैया को संरक्षण देने को लेकर पहल शुरू करते हुए जनवरी 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी को घोषित कर रखा है। लोगों के घर-आंगन-बालकोनी में इसकी चहचहाट दोबारा गूंजने लगे इसे लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। सरकारी और गैरसरकारी संस्थान की ओर से लोगों को गौरैया बाक्स और कृत्रिम घोषला दिया जाता है। लोग भी जागरूक हुए है लोगों के घरों में गौरैया बाक्स और कृत्रिम घोषला नजर आने लगा है। ’विलुप्ती के कारण’ इसके संरक्षण के लिए काम की जरूरत को देखते हुए मैं इससे जुडा क्योंकि विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में गौरैया आ गई है। पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को दाना खिलाया करती थी तो घर-आंगन में मां अपने बच्चे को उसे दिखाते हुए खाना खिलाया करती थी। लेकिन अब लोग इंटरनेट पर इसकी खूबसूरत तस्वीरें देख आहे भरते हैं। आवासीय गिरावट, पेड़ों की कमी और सब्जी-फल-अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गौरैया अपने बच्चे को सब्जी-फलों में लगने वाले कीड़े को खिलाती है। इससे गौरैया के बच्चे को प्रोटीन मिलता है। बच्चा अनाज खा नहीं सकता है। लेकिन जिस तरह से सब्जी-फल-अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा है उससे उन्हें सही आहार नहीं मिल पाता है। गौरैयों की कमी के पीछे मोबाइल टावरों को दोषी ठहराया जाता रहा है। गौरैयों के कम होने के पीछे मोबाइल टावरों का तर्क भारत सरकार की रिपोर्ट से खारिज हो चुका है। सरकारी सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है कि मोबाइल टावरों का कोई प्रभाव गौरैया के प्रजनन पर नहीं पड़ता है। हालांकि इसके विलुप्ती के कारणांे को ढूंढ़ने की जरूत है। यह अपना आवास इंसानों के घरों में बनाती है। पहले खुल्ले-खुल्ले आवास होते थे। अब मकानों में वेंटीलेटर तक नहीं होता। उपर से घर आपस में सटे होते हैं। ऐसे में घोषला बनाने के लिए जगह नहीं मिलना भी बड़ा कारण है। वैसे आज भी इसे जिस घर में छेद-खोह दिख जाता है वहां घोषला बना लेती है। शहरों और गांवों में मकानों का पक्काकरण होने से गौरैया को घर बनाने में परेशानी होती है। खपरैल या फूस के घरों में यह आसानी से घर बना लेती है। गौरैया की खासियत यह है कि इसे जहाँ आहार-पानी-पेड़ और सुरक्षा दिखता है वहां प्रवास करती है। यही वजह है कि रेलवे स्टेशनों पर गौरैया दिख जाती है। वहां आसानी से उसे आहार मिल जाता है। पटना शहर में हर क्षेत्र में यह नहीं दिखती, लेकिन पुराने इलाकों और पटना रेलवे प्लेटफॉर्म पर दिख जाती है। ’गौरैया-घरेलू पक्षी’ गौरैया एक छोटी सी घरेलू पक्षी है। यह यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से पायी जाती है। इसकी छह प्रजातियां हैं, हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। हाउस स्पैरो को ही “गौरैया” कहा जाता है। यह हल्की भूरे रंग की होती है। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से किया जाता है। जबकि, मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। (लेखक- प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो में सहायक निदेशक हैं और अब तक नौ पुस्तकें लिख चुके हैं।) संजय कुमार, 303, दिगम्बर प्लेस, लोहियानगर, कंकडबाग, पटना-800020, बिहार। -- *परिचय
संजय कुमार *बिहार, भोजपुर के आरा में जन्म, वैसे भागलपुर का मूलनिवासी। पत्रकारिता में डिप्लोमा व स्नातकोत्तर। *2007 से गौरैया संरक्षण में सक्रिय। सोशल मीडिया पर पेज बनाकर इसके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना। * बिहार सरकार के वन एवं पर्यवरण विभाग से वर्ष 2016 में गौरैया संरक्षण में कार्य हेतु द्वितीय पुरस्कार। * फोटोग्राफी का बचपन से शौक। पत्रकारिता के दौरान ज्यादा प्रयोग। कई वर्षों से चिड़ियों की फोटोग्राफी। खास कर गौरैया की फोटोग्राफी करना(लोकेशन-घर दिगंबर प्लेस, लोहियानगर, कंकड़बाग पटना)। * प्रोफेशन-पत्रकारिता-शुरूआत वर्ष 1989 में भागलपुर शहर से। राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर ढेरों आलेख, रिर्पोट-समाचार, फीचर आदि प्रकाशित। आकाशवाणी से वार्ता प्रसारित और रेडियो नाटकों में भागीदारी, साथ ही नुक्कड़ नाट्य आंदोलन के शुरूआती दौर से ही जुड़ाव एवं सक्रिय भूमिका। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रों के लिए लेखन जारी, खासकर मीडिया, वंचित वर्ग और सामाजिक सरोकर के मुद्दे को लेकर। वर्ष 2002 से अक्टूबर 2014 तक इलेक्ट्रानिक मीडिया-आकाशवाणी के समाचार प्रभाग और वर्ष दिसंबर 2014से दूरदर्शन के समाचार सेवा प्रभाग से जुड़ कर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, विकासात्मक और जनहित से जुड़ी खबरों को जनता के बीच पहुँचाने की कोशिश। *अब तक नौ पुस्तकें प्रकाशित। 1. तालों में ताले अलीगढ़ के ताले, 2.नागालैंड के रंग बिरंगे उत्सव, 3.पूरब का स्वीट्जरलैंड नागालैंड, 4. 1857 जनक्रांति के बिहारी नायक, 5. बिहार की पत्रकारिता तब और अब, 6. आकाशवाणी समाचार की दुनिया, 7.रेडियो पत्रकारिता और 8. मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे और 9. मीडिया: महिला, जाति और जुगाड़ 10. मीडिया में जाति का खेल (पे्रस में) । *बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा ‘नवोदित साहित्य सम्मान’, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अलावे विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा कई सम्मानों से सम्मानित। * सम्प्रतिः वर्ष 1993 से भारतीय सूचना सेवा में। *फिलहाल प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय,पटना में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत। *सम्पर्क संजय कुमार, 303, दिगम्बर प्लेस, लोहियानगर, कंकडबाग, पटना-800020, बिहार। *मो-09934293148, 7004298794 मेल-sanju3feb@gmail.com